विरासत

कोई आया है इक अरसे के बाद
अपनी कहानी के कुछ पन्नो के साथ

माजी के कुछ बदलते हुए अलफ़ाज़
कुछ जाने पहचाने कुछ छिपे से राज़

हकीकत ब्यान करने कि ख़्वाहिश
सबको गीतों से लुभाने की साजिश

फिर वही गीता फिर वही कही अनकही
इस पल की रेत पे चलते छपते ठहरे निशां

वक्त की बारिश में झड़ गए जो पत्ते
उनकी राख से सींचे नये बीजों के अँकुर

कौन जाने क्या नया है आज
समय बदला तो उभरे पुराणे राज़

जैसे गंगा का जल नित्यनूतन है फिर भी
युगोँ से बहती कहती सुनाती कहानी ख़ास।










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