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खलिश

यूँ तेरा मुझे धीरे धीरे खुद से दूर करना तुझमे जो तू है ओर मुझमें जो में हूँ उस के करीब लाने की साज़िश जो मुकाम कभी देखा नहीं उस रहगुजर से होकर बेखबर खौलती रेत पर जगमगाते सितारों की झिलमिल प्यासे राही को ठंडी बूंदों की आहट खवाबों के सागर में उठती लहर इक झलक खामोशी की गहरी न सुधबुध न बेहोशी न कोई मंज़र बस तेरा आशियाना नी मेरा घर ।

तड़प

कैसी कशिश है कैसी खामोशी पागल मनवा क्षणिक उदासी रुकी थमी सी गहरी बेहोशी कांच के टुकड़ों की झिलमिल सी बिखरी कण-कण में तरंग निराली इक भीतर से उठती जलती आग तप्ती लहलहाती सी घुटन ऐसी चिल्लाती सी अंदर से बाहर खिंचती चलती पल पल सिम्टी बिखरी सी सांसें रुकती सहमी सी कुछ कहती नी कुछ कह नहीं पाती ।