खलिश

यूँ तेरा मुझे धीरे धीरे खुद से दूर करना
तुझमे जो तू है ओर मुझमें जो में हूँ

उस के करीब लाने की साज़िश जो
मुकाम कभी देखा नहीं उस रहगुजर

से होकर बेखबर खौलती रेत पर
जगमगाते सितारों की झिलमिल

प्यासे राही को ठंडी बूंदों की आहट
खवाबों के सागर में उठती लहर

इक झलक खामोशी की गहरी
न सुधबुध न बेहोशी न कोई मंज़र

बस तेरा आशियाना नी मेरा घर ।

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