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Showing posts from October, 2019

खलिश

यूँ तेरा मुझे धीरे धीरे खुद से दूर करना तुझमे जो तू है ओर मुझमें जो में हूँ उस के करीब लाने की साज़िश जो मुकाम कभी देखा नहीं उस रहगुजर से होकर बेखबर खौलती रेत पर जगमगाते सिता...

तड़प

कैसी कशिश है कैसी खामोशी पागल मनवा क्षणिक उदासी रुकी थमी सी गहरी बेहोशी कांच के टुकड़ों की झिलमिल सी बिखरी कण-कण में तरंग निराली इक भीतर से उठती जलती आग तप्ती लहलहाती सी घु...