नकली सी
रूह छूकर निकली लम्हा लम्हा तन्हा पगली रब ए इश्क से पिघली रस की भरी उलझी सी जगमग झिलमिल मीठी रंगीन मचलती तित्ली सी ख्वाहिश ख़्वाबों की सोंधी आँख मूंदे जगी सी थिरकते पेरों पे थमी गिरी उठी फिसली सी चाहत की बन गठरी मिलने पी को नी चली री